इतिहास प्रसिद्ध कोणार्क का सूर्य मंदिर। SUN TEMPLE OF KONARK UDISA IN HINDI
भगवान श्री सूर्य देव का यह मंदिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर, जिसे मंदिरों की नगरी कहा जाता है। भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर की दूरी पर कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है। देश-विदेश से पर्यटक इस मंदिर को देखने के लिए हजारों की संख्या में रोज पहुंचते हैं। सूर्य देव का यह एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।
कोणार्क के सूर्य मंदिर को बनाने की कथा
एक प्रचलित कथा के अनुसार कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने करवाया था। ऐसा कहा जाता है, कि श्रीकृष्ण के पुत्र सांब ने गोपियों को बुरी नजर से देखा था। जिस कारण श्री कृष्ण क्रोधित हो गए एवं श्री कृष्ण ने उन्हें श्राप दिया था। श्रीकृष्ण के श्राप से साम्ब कोढ़ी हो गया था। उसने मैत्रेय वन में सूर्य की पूजा और तपस्या की तब जाकर उसका रोग ठीक हुआ था। तपस्या के दौरान साम्ब को भगवान सूर्य की मूर्ति चंद्रभागा नदी के जल में दिखाई दी। वह कमल के फूल पर बैठे थे। रोग ठीक होने पर साम्ब ने ही कोणार्क के इस प्रसिद्ध मंदिर की नींव रखी थी।
साम्ब द्वारा बनाए गए इस मंदिर को बाद में नरसिंह देव ने पूर्ण करवाया था।
नरसिंह देव ने 1200 कारीगरों से बनवाया था कोणार्क का सूर्य मंदिर
नरसिंह देव ने सूर्य देव के इस मंदिर को बनवाने के लिए विशु नामक कारीगर को कार्य सौंपा था। विशु एवं अन्य 1200 कारीगरों ने मिलकर इस मंदिर को बनाने का कार्य किया था। इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर सन 1238 में बनना शुरू हुआ था। इस मंदिर को बनाने में 1200 कारीगरों ने कठोर परिश्रम किया था। जिसे 12 वर्षों में पूरा किया गया था।
1238ई के लगभग भारत में यवनों का बोलबाला था। नरसिंह देव ने यवनों को हराकर उनसे विजय प्राप्त करने की खुशी में एवं याद में इस सुंदर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
कोणार्क के सूर्य मंदिर की सुंदरता
कोणार्क के सूर्य मंदिर की ऊंचाई लगभग 68 मीटर है, इस मंदिर के अंदर भगवान सूर्य के रथ में सात घोड़े हैं। मंदिर की कारीगरी को देखते ही उस काल की कला व सौंदर्य का आभास हो जाता है। इस मंदिर को बनाने वाले कारीगरों द्वारा उच्च कोटि का कार्य अत्यंत ही बारीकी द्वारा किया गया है। इतना बारीक कार्य हमको दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता है।
क्या कोणार्क का सूर्य मंदिर पूर्ण होने से पहले ही खंडन बन चुका था?
इस संबंध में इतिहासकार स्पष्ट तो नहीं बताते हैं, किंतु कोणार्क ओडिशा के आसपास के क्षेत्रों में एक कथा प्रचलित है। उस कथा के अनुसार शिवि नामक कारीगर ने मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया था।
जब कारीगर शिवि मंदिर बनाने के लिए घर से रवाना होता है, उस समय उसकी पत्नी गर्भवती थी। घर में और कोई नहीं था। वह मंदिर बनाने में इतना व्यस्त हो जाता है कि वर्षों तक घर नहीं पहुंच पाता।
मंदिर बनाते-बनाते बरसों बीत गए,परंतु उस पर कलश नहीं चढ़ पाया था। अंत में राजा ने शिवि को बुलाकर आदेश दिया-यदि 1 महीने में कलश न चढा तो सभी को मृत्युदंड दे दिया जाएगा।दूसरी तरफ शिवि के घर में उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था। वह पुत्र 12 वर्ष का हो गया था। उसकी मां ने उसे उसके पिता के बारे में बताया। वह अकेला ही पिता से मिलने के लिए चल दिया। उसने पहचान के लिए अपने घर की बेरी के बेर ले लिए ताकि उसका पिता उन बेरो को खा कर उसकी पहचान कर सकें।
जब शिवि का पुत्र धर्मपद कोणार्क पहुंचा तो उसे अपने पिता द्वारा बनाए गए मंदिर को देख कर बहुत खुशी हुई। शिवि अपने पुत्र को देखकर फूला नहीं समाया। उसने पुत्र को गले से लगा लिया। रात में शिवि अन्य कारीगरों से कलश चढ़ाने के बारे में बातचीत कर रहा था। उस समय धर्मपद भी उसके पास बैठा था। धर्मपद ने पिता को बताया, मैंने घर पर रखी कारीगरी संबंधित सभी किताबें पढ़ी है।मैं इस कलश को आसानी से चढ़ा सकता हूं। यह सुनकर शिवि को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन धर्मपद ने जो कहा था वह दूसरे दिन उसने करके भी दिखा दिया। साथ ही उसके ऐसा करने से 12 सौ कारीगरों की जान भी बच गई। लेकिन उसने 1200 कारीगरों की जान बचाने के लिए खुद ही मंदिर के ऊपर से छलांग लगा ली थी।
वह जानता था, जब राजा को पता चलेगा कि उसके कारीगरों ने कलश नहीं चढ़ाया है, तो वह उन्हें मृत्युदंड दे देगा।पुत्र का बलिदान देखकर शिवि के आंसू नहीं रुके। आज भी उड़िया भाषा में एक कहावत कही जाती है कि- तुम्हें पुत्र प्यारा है या 1200 सौ कारीगर।
कुछ लोगों का कहना है शिवि भी पुत्र की मृत्यु से पागल हो गया। उसने खुद ही मंदिर को गिराना शुरू कर दिया। कुछ लोग कहते हैं कि श्राप के कारण ऐसा हुआ। कुछ भी हो मंदिर का बचा हुआ हिस्सा इस बात का प्रणाम प्रमाण है,कि कला की दृष्टि से यह मंदिर बेजोड़ था। पत्थरों पर इतना बारीक काम दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता। वर्तमान में सरकार ने वहां पर एक संग्रहालय का निर्माण भी किया है।