अंतर्राष्ट्रीय बाजरा या मिलेट वर्ष 2023|International Millet Year 2023।
भारत सरकार की अनुशंसा पर यूएन ने 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष” घोषित किया गया है। इसका कारण बाजरे से पैदा होने वाले फूड प्रॉडक्ट को बढ़ावा देना है ताकि वैश्विक बीमारियों पर नियन्त्रण किया जा सके.!
आज हम सबसे ज्यादा बाजरा पैदा करते हैं लेकिन खान पान में इसका प्रयोग कम करते जा रहे हैं.! जबकि खाने के मामले में सबसे ज्यादा फायदेमंद बाजरा है.!
जहां तक बाजरे के गुणों की बात है..? सभी खाने के अनाजों में सबसे गुणकारी है.! बाजरे में फाइबर्स पर्याप्त मात्रा में होते हैं जो हमारे पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं। प्रोटीन और अमीनो अम्ल भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं। बाजरे में कैंसर कारक टॉक्सिन भी नहीं बनते हैं जो दूसरे धानो में बनते हैं..!
बाजरे से शरीर को पर्याप्त एनर्जी मिलती है जिससे शरीर चुस्त और फुर्तिला बना रहता है। यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है जो स्वस्थ दिल के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी है..!
Read this article:-When World Tourism Day is celebrated ?
बाजरा डायबिटीज में भी उपयोगी है.! ज्यादा वजन वालों के लिए यह रामबाण औषधि है क्योंकि हमारे वजन को नियंत्रित रखता है.! त्वचा और बालों के लिए भी यह खास उपयोगी है.! अस्थमा के रोगी को बाजरे का उपयोग करना चाहिए.! यह शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर शरीर को स्वस्थ रखता है..!
इतना गुणकारी होने के बाद भी हम बाजरे को भोजन से दूर करते जा रहे हैं। खाली कागजों में बाजरा वर्ष मनाने से कुछ नहीं होगा.! बाजरे से उत्पन होने वाले खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करके ही स्वस्थ हो सकते हैं.!
गरीबों का अनाज बाजरा 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ (International Millet Year) घोषित |
गरीबों का अनाज कहकर कभी नकार दिए गए ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, सांवा, कोदों जैसे मोटे अनाज आज फिर चर्चा में हैं। संयुक्त राष्ट्र ने आने वाले नये वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ (इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर) घोषित किया है। यह घोषणा हमारे प्रधानमंत्री के बहुस्तरीय प्रयास से का नतीजा है। वे मोटे अनाजों को ‘पोषक अनाज’ कह कर संबोधित करते हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिचर्च के अनुसार पोषण का पावर हाउस बाजरा |
मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिचर्च के अनुसार इनमें पाए जाने वाले मुख्य पोषक तत्व ये हैं।
प्रोटीन: 7 से 12 प्रतिशत
बसा: 2 से 7 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेड: 65 से 75 प्रतिशत
डायटरी फाइबर: 15 से 20 प्रतिशत
अन्य लाभ: मोटे अनाजों की खेती से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बातें ये है:
- कम पानी, कम फर्टिलाइजर, और अपेक्षाकृत खराब मिट्टी की आवश्यकता,
- जटिल मौसमी हालातों में भी कुछ न कुछ उत्पादन देना,
- कीट और बीमारियों की समस्या नगण्य होने से सीमित संसाधनो में खेती,
- छोटी जोत के अनुकूल होना।
शुरुआती सभ्यता में मोटे अनाज: मनुष्य ने सभ्यता के विकासक्रम में खेती की शुरुआत मोटे अनाजों से ही की थी। ईसा पूर्व 3000 साल की सिंधु घाटी सभ्यता में भी मोटे अनाजों के प्रमाण मिले हैं।
आज की स्थिति : मोटे अनाजों की खपत से संबंधित सर्वेक्षण करीब एक दशक पहले हुआ था। उसके अनुसार 1962 में देश के शहरी इलाकों में मोटे अनाजों की कुल सालाना खपत 32.9 किलो प्रति व्यक्ति थी, जो 2010 में घटकर केवल 4.2 किलो प्रति व्यक्ति रह गई।
हरित क्रांति के दौर में गेहूं और चावल को नीतिगत समर्थन मिलने से मोटे अनाजों का रकबा 75 प्रतिशत तक कम हो गया। वर्ष 2018 से पोषक अनाज की श्रेणी में रखकर इन्हें बढ़ावा देने की शुरुआत हुई, जिसके कुछ परिणाम स्वरूप इनका उत्पादन कुछ बढ़ा।
उत्पादन: 2018-19: 164 लाख टन
2020-21: 176 लाख टन
क्या विशेष प्रस्तावित है:
- मोटे अनाजों की पौष्टिकता और स्वास्थ वर्धक गुणों के बारे में जनता को जागरूक करना।
- नीतियों की मदद से मोटे अनाजों की खेती के लिए किसानो को प्रोत्साहित किए करना।
- मोटे अनाजों का एक अंतर्राष्ट्रीय बाजार विकसित करना।
- इन अनाजों से संबंधित शोध और विकास को बढ़ावा देना।
- वैल्यू एडिसन और पोस्ट हार्वेस्ट शोध द्वारा नूडल्स और कुरकुरे जैसे नए प्रोडक्ट्स और नई तकनीक विकसित करना,
- बेहतर भंडारण व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य संतुलन के जरिए बाजार में मांग बढ़ाना, आदि।
आशा है, इन प्रयासों से मोटे अनाजों की मांग बढ़ेगी और उत्पादन में संतुलन आयेगा। इससे हर थाली तक संतुलित और पोषक आहार पहुंचाने का लक्ष्य पूरा होगा।