सोमरस का अर्थ। सोमरस का महत्व। सोमरस बनाने की विधि।

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सोमरस का अर्थ। सोमरस का महत्व। सोमरस बनाने की विधि। 

सोमरस का अर्थ। सोमरस का महत्व। सोमरस बनाने की विधि।
सोमरस का अर्थ। सोमरस का महत्व। सोमरस बनाने की विधि। 

सोमरस का अर्थ।

अमृत या देवताओं का पेय, मदिरा, शराब।कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ में सोमरस की आहुति देते थे और फिर प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते थे।ऋग्वेद के अनुसार सोमरस के गुण संजीवनी बूटी की तरह हैं।यह बलवर्द्धक पेय है जो व्यक्ति को चिर युवा रखता है।इसे पीने वाला अपराजेय हो जाता है। 

औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति|। – निरुक्त शास्त्र 

भावार्थ:  सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं। सोम को गाय के दूध में मिलाने पर ‘गवशिरम्’दही में ‘दध्यशिरम्’बनता है। शहद या घी के साथ भी मिश्रण किया जाता था। सोम रस बनाने की प्रक्रिया वैदिक यज्ञों में बड़े महत्व की है।

सोमरस का आध्यात्मिक अर्थ क्या है? 

यदि आध्यात्मिक नजरिए से यह माना जाता है कि सोम साधना की उच्च अवस्था में इंसान के शरीर में पैदा होने वाला रस है। इसके लिए कहा गया है :-

सोमं मन्यते पपिवान् यत् संविषन्त्योषधिम्। सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन।। (ऋग्वेद-१०-८५-३) 

यानी बहुत से लोग मानते हैं कि मात्र औषधि रूप में जो लेते हैं, वही सोम है ऐसा नहीं है। एक सोमरस हमारे भीतर भी है, जो अमृतस्वरूप परम तत्व है जिसको खाया-पिया नहीं जाता केवल ज्ञानियों द्वारा ही पाया जा सकता है।

सोमरस एक ऐसा पेय है, जिसका जिक्र देवताओं के वर्णन के साथ ही आता है। देवताओं से जुड़े हर ग्रंथ, कथा, संदर्भ में देवगणों को सोमरस का पान करते हुए बताया जाता है। इन समस्त वर्णनों में जिस तरह सोमरस का वर्णन किया जाता है, उससे अनुभव होता है कि यह अवश्य ही कोई बहुत ही स्वादिष्ट पेय है।

सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों में फर्क है? 

सोमरस का अर्थ। सोमरस का महत्व। सोमरस बनाने की विधि।

हमारे वेद, पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में सोमरस का वर्णन आता है। हम लोग सोमरस को शराब या मदिरा समझते है, हालांकि यह तथ्य बिलकुल गलत है। सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों में फर्क है। ऋग्वेद में कहा गया है-

।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।

यानी सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं। 

कब होता था सोमरस का इसका उपयोग? 

देवताओं के लिए यह मुख्य पदार्थ था और अनेक यज्ञों में इसका उपयोग होता था। वराहपुराण के अनुसार ब्रहमा अश्विनी कुमार जो कि सूर्य के पूत्र थे को उनकी तपस्या के फलस्वरूप सोमरस का अधिकारी होने का आशीर्वद देते हैं यानी इसका अधिकार केवल देवताओं को था। जो भी देवत्व को प्राप्त होता था उसे भी तपस्या के बाद होम के माध्यम से सोमरस पान का अधिकार मिलता था।

संजीवनी बूटी की तरह होते है सोमरस के गुण

सोमरस एक ऐसा पेय है, जो संजीवनी की तरह काम करता है। यह शरीर को हमेशा जवान और ताकतवर बनाए रखता है।

।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम। उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।।– ऋग्वेद (६-४७-१) 

यानी सोम बहुत स्वादिष्ट और मीठा पेय है। इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है। वह अपराजेय बन जाता है। शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है।

कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है। अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद, यानी ईसा के काफी पहले ही इस पौधे की पहचान मुश्किल होती गई। ये भी कहा जाता है कि सोम (होम) अनुष्ठान करने वाले लोगों ने इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं दी, उसे अपने तक ही रखा और कालांतर में ऐसे अनुष्ठान करने वाले खत्म होते गए। यही कारण रहा कि सोम की पहचान मुश्किल होती गई।

सोमरस को बनाने की विधि

ऋग्वेद में सोमरस निर्माण की विधि बताई गई है –

।।उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि।। (ऋग्वेद सूक्त २८ श्लोक ९)

भावार्थ: मूसल से कुचली हुई सोम को बर्तन से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और छानने के लिए पवित्र चरम पर रखें।

 सोम रस बनाने की प्रक्रिया

इसकी तीन अवस्थाएं हैं- पेरना, छानना और मिलाना। कहा जाता है ऋषि-मुनि इन्हें अनुष्ठान में देवताओं को अर्पित करते थे और बाद में प्रसाद के रूप में खुद भी इसका सेवन करते थे। सोमरस एक ऐसा पेय है, जो संजीवनी की तरह काम करता है। यह शरीर को हमेशा जवान और ताकतवर बनाए रखता है (ज़ाहिर है कि यह पदार्थ शराब या नशे की कोई वस्तु तो हो नहीं सकती)

।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम। उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।। – ऋग्वेद (६-४७-१)

भावार्थ: सोम बहुत स्वादिष्ट और मीठा पेय है। इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है। वह अपराजेय बन जाता है।

शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है। क्या शराब पीने से कभी किसी मनुष्य में बल आ सकता है? या वह शरीर को जवान बनाए रख सकता है? लेकिन चूंकि हिन्दू धर्म को बदनाम करना होता है, इसलिए विधर्मी सोमरस को “शराब” के रूप में प्रचलित करते हैं।  

कुछ वर्ष पूर्व इरान की पहाड़ियों में इफेड्रा नामक पौधा खोजा गया, जिसे सोमलता माना गया है। यदि सोमरस का आध्यात्मिक पहलू देखें तो यह माना जाता है, कि मनुष्य जब साधना की उच्च अवस्था में पहुँचता है तब इंसान के शरीर में पैदा होने वाला रस ही सोम है। इसके लिए कहा गया है:-

।।“…सोमं मन्यते पपिवान् यत् संविषन्त्योषधिम्। सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन।। (ऋग्वेद-१०-८५-३)

भावार्थ:  एक सोमरस हमारे भीतर भी है। जो अमृतस्वरूप परम तत्व है जिसको खाया-पिया नहीं जाता केवल ज्ञानियों द्वारा ही पाया जा सकता है।

संक्षेप में कहने का तात्पर्य यह है कि सनातन धर्म को बदनाम करने, इसकी खिल्ली उड़ाने अथवा सनातन धर्म को दूसरे रेगिस्तानी पंथों के समकक्ष खड़ा करने की दानवी इच्छा के चलते विधर्मी और बिकाऊ लोग हमारे वैदिक ग्रंथों से विभिन्न शब्दों का मनमाना अर्थ निकालते हैं और उसका दुष्प्रचार करते हैं। परन्तु हमें भी सभी सनातनियों के बीच सही स्थिति पहुँचाने का सतत प्रयास करते रहना होगा।

मदिरा(शराब) और सोमरस में क्या अंतर है?

सोमरस का अर्थ। सोमरस का महत्व। सोमरस बनाने की विधि।

सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि सोमरस मदिरा की तरह कोई मादक पदार्थ नहीं है। हमारे वेदों में सोमरस का विस्तृत विवरण मिलता है। विशेष रूप से ऋग्वेद में तो कई ऋचाएं विस्तार से सोमरस बनाने और पीने की विधि का वर्णन करती हैं। हमारे धर्मग्रंथों में मदिरा के लिए मद्यपान शब्द का उपयोग हुआ है, जिसमें मद का अर्थ अहंकार या नशे से जुड़ा है। इससे ठीक अलग सोमरस के लिए सोमपान शब्द का उपयोग हुआ है, जहां सोम का अर्थ शीतल अमृत बताया गया है। मदिरा के निर्माण में जहां अन्न या फलों को कई दिन तक सड़ाया जाता है, वहीं सोमरस को बनाने के लिए सोम नाम के पौधे को पीसने, छानने के बाद दूध या दही मिलाकर लेने का वर्णन मिलता है। इसमें स्वादानुसार शहद या घी मिलाने का भी वर्णन मिलता है। इससे प्रमाणित होता है कि सोमरस मदिरा किसी भी स्थिति में नहीं है।

सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त रस था जिसे बरगद के दूध में मिश्रित कर सोमरस बनाया जाता था।आज सोम का पौधा लगभग विलुप्त है । शराब पीने को सुरापान कहा जाता था।सुरापान असुर करते थे। ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है। 

टीवी सीरियल्स ने भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं।जिसे सामान्य जनता शराब समझती है। 

सोमरस , सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमे बरगद का रस गो का दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था , इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था। जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी। ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ो बार आह्वान किया गया है । आप जिस इंद्र को सोचकर अपने मन मे टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तविक रूप से वैसा कुछ नही था। जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता,इंद्र देवता ,रुद्र देवता आदि इन्ही सब का महत्व लिखा गया है । मन मे वहम मत पालिये। आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है। बस प्रकृति ने सोम जड़ीबूटी हमसे छीन ली तो एक बात दिमाग मे बैठा लीजिये , सोमरस नशा करने की चीज नही थी। आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है अगर आप उसे शराब समझते हैं।

शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं ।

सोमरस का अपमान मत करिए , सोमरस उस समय का चरणामृत/पंचामृत था ।

सोमरस किसे कहते हैं? सोमरस और मदिरा में क्या अंतर है?

सोम नामक पौधे की पत्तियों को पीसकर निचोड़कर तैयार किया हुआ रस सोमरस है। ऋग्वेद के अनुसार यह इन्द्र को बहुत प्रिय था । इसकी आहुतियां यज्ञ में सामगान के साथ दी जाती हैं।

उत्तर वैदिक काल के ग्रंथों में यह विवरण मिलता है कि सोम की पत्तियां छकड़ों में भरकर बेचने के लिए लाई जाती थी। सोम रस मधुर गुण का होता है। तीन दिन के बाद जब यह खट्टा हो जाता था तो यह मदिरा कही जाती थी । सोमरस को आयुर्वेद के अनुसार मधुर , रसायन , बल्य और वीर्यवर्द्धक माना गया है।

ग्रंथों में सोमरस के बारे में कुछ अलग ही बात लिखी है जिसमे सोमरस में दूध और दही मिलाने की बात की गई है।ऋचाओ में लिखा है कि ‘यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दही मिला हुआ सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो’। ऋग्वेद में सोमरस के बारे में लिखा हुआ है- ‘हे वायुदेव, यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिलाकर तैयार किया गया है आइये और इसका पान कीजिये।’ तो कहने का मतलब यही है कि हमारे धर्म ग्रंथों में जिस सोमरस की बात की गई है वह दूध और दही मिला हुआ होता है और उसका शराब या मद से कोई लेना देना नहीं होता है. प्राचीन ग्रंथों में शराब के लिए मदिरापान शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका अर्थ होता है नशा या उन्माद।जबकि सोमरस का अर्थ होता है- शीतल या अमृत के समान। 

इसका सीधा सा मतलब यही है कि सोमरस और शराब दोनों ही अलग-अलग चीज़े है और इनका आपस में कोई लेना देना नहीं है। 

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