मानगढ़ धाम बांसवाड़ा क्यों प्रसिद्ध है?।Why Mangarh Dham Banswara is Famous?।
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले का मानगढ़ धाम इतिहास में इसलिए प्रसिद्ध है कि इस दिन लगभग पंद्रह सौ आदिवासियों की हत्या अंग्रेजों द्वारा कर दी गई थी। इस पूरी कहानी को जानिए, क्या थी उस दिन की घटना?
मानगढ़ धाम में सभा किसके नेतृत्व में हुई थी?
राजस्थान का जनजाति बहुल दक्षिणांचल वागड़(बांसवाड़ा व डूंगरपुर जिला) न सिर्फ अपनी आदिम संस्कृति के लिए देश-प्रदेश में जाना-पहचाना जाता है, अपितु यह अंचल आजादी के इतिहास की एक ऐसी घटना का भी साक्षी है,जिसमें महान संत गोविंद गुरु के नेतृत्व में पंद्रह सौ आदिवासी गुरु भक्तों ने अपना बलिदान दिया। बांसवाड़ा जिला अंतर्गत आनंदपुरी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मानगढ़ धाम पहाड़ ही वह स्थान है, जहां पर 17 नवंबर 1913 मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गुरु का जन्मदिन मनाने के लिए एकत्र हुए हजारों गुरु भक्तों को ब्रिटिश सेना ने मौत के घाट उतार दिया था।
बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले सहित सरहदी क्षेत्रों में गोविंद गुरु और उनके शिष्यों द्वारा स्थापित धूणीयां आज भी उस बलिदान की साक्षी है। वर्तमान में इस स्थान पर गुरु भक्तों के बलिदान की याद दिलाता विशाल स्तंभ, गोविंद गुरु की प्रस्तर प्रतिमा, पत्थरों पर उकेरी बलिदान गाथा के चित्र,धूनी, गोविंद गुरु पैनोरमा और उद्यान आकर्षण का केंद्र है।
भील आदिवासियों के अद्भुत साहस और अटूट एकता का गवाह मानगढ़।
वास्तव में मानगढ़ गवाह है,भील आदिवासियों के अद्भुत साहस और अटूट एकता का, जिसके कारण अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े थे। यह एकजुटता गोविंद गुरु के नेतृत्व में बनी थी जो स्वयं बंजारा समाज से थे। इसके बावजूद गोविंद गुरु का जीवन भील समुदाय के लिए समर्पित रहा। खास बात यह है कि उनके नेतृत्व में हुए इस ऐतिहासिक विद्रोह के निशाने पर केवल अंग्रेज नहीं थे,बल्कि वे स्थानीय रजवाड़े भी थे जिनके जुल्मों सितम से भील समुदाय के लोग कराह रहे थे।
मानगढ़ धाम बांसवाड़ा में हुए नरसंहार को राजस्थान के जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से भी जाना जाता है।
गोविंद गुरु कि सम्प सभा व मानगढ़ धाम।
राजस्थान के जलियांवाला बाग के नाम से विख्यात मानगढ़ धाम वागड को स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूत, महान समाज सुधारक, क्रांति चेतना व्यक्तित्व के धनी गोविंद गुरु की साधना स्थली के रूप में जाना व पहचाना जाता है। सामाजिक कुरीतियों दमन एवं शोषण से जूझ रहे समाज को उभारने के लिए गोविंद गुरु द्वारा 1903 में संप सभा नामक संगठन की गतिविधियों के केंद्र के रूप में मानगढ़ की विशेष ख्याति है।
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