गणेश उत्सव। गणपति बप्पा मोरिया। गणेश चतुर्थी। गणेश महोत्सव।

गणेश उत्सव। गणपति बप्पा मोरिया। गणेश चतुर्थी। गणेश महोत्सव।

गणेश उत्सव का इतिहास

प्राचीन समय से गणेशोत्सव होता आया है। लेकिन पेशवाओं के शासन में उसका महत्व ज्यादा बढ़ा है। ऐसा कहा जाता है की पुणे शहर में कस्बा गणपति की स्थापना हमारे हिन्दू राजा शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने की थी। मगर उसके बाद में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बना दिया था। 1893 में गणेशोत्सव की सार्वजनिक शुरुआत बाल गंगाधर तिलक ने कि थी। उन्होंने गणेशोत्सव का आयोजन सभी जातियो और धर्मो को एक मंच देने का था। क्योकि सब बैठ कर मिल के कोई विचार कर देश के लिए कुछ कर सके। क्योकि स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए यह बहुत जरुरी था। ऐसे ही शुरू हुआ। गणेश महोत्सव आज के समय में भी बहुत धाम धूम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र के साथ आज आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी गणेशोत्सव मनाते है।


हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी का अधिक महत्व है। पूरे भारत में गणेश चतुर्थी के त्योहार को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार गणेश जी के जन्म के उपलक्ष में गणेश चतुर्थी के त्योहार को मनाया जाता है। गणेश जी की पूजा की जाती है। लोग गणेश जी की मूर्ति को घर पर लाते हैं। आसन पर स्थापित करते हैं। 10 दिनों तक गणेश जी की पूजा विधि विधान से करते हैं। गणेश जी को घर में विराजित करने से घर के दुःख समाप्त होते हैं। भगवान गणेश भक्तों के कष्ट को दूर करते हैं।


गणेश जी को एकदंताय क्यों कहा जाता है?

गणेश जी को एकदंत कहा जाने के पीछे एक कथा है । चलिए जानते हैं कथा क्या कहती है:-

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महर्षि वेद व्यास जब महाभारत की कथा लिखना चाहते थे तब उसे धाराप्रवाह लिखने में उन्हे कठिनाई हो रही थी तब उन्होने ब्रह्मा से मदद मांगी ब्रहमाजी ने इस काम के लिये गणेशजी की मदद लेने के लिये बोला गया ।

गणेशजी इस कार्य हेतू तैयार तो हो गये लेकिन उन्होने एक शर्त रखी की जब तक काव्य का लेखन पुरा नहिं हो जाता तब तक नहीं रुकेंगे । तब महर्षि ने भी शर्त रखी की हर एक श्लोक को समझे बिना नही लिखा जाना चाहिए ।

दोनों जब इस महाकाव्य की रचना कर रहे थे तब व्यासजी की तेज गती से कथन को गणेशजी, मयूर पंख की कलम से तेजी से नहिं लिख पा रहें थे वो कलम बार-बार टुट जाती थी । तो लेखन में बार-बार व्यवधान आ जाता था । तब उकता कर गणेशजी ने अपने दोनों दाँतो में से दाहिना दांत तोड कर उसकी कलम बना दी ।

इसी दांत के बने कलम से उन्होने महाकाव्य की सम्पुर्ण रचना कर डाली । उनके इसी तत्परता से दिखाए गये गुण से प्रसन्न हो महर्षि वेदव्यास ने गणेशजी को एकदंत नाम दिया जो गणेशजी के अनेक नामों मे से एक नाम हैं ।


भगवान गणेश को मोतीचूर का लड्डू अर्थात मोदक क्यों अतिप्रिय है?


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किसी भी शुभ काम की शुरुआत गणपति बप्पा की पूजा से होती है. हर साल गणेश चतुर्थी धूमधाम से पूरे देश में मनाई जाती हैं। हर बार की तरह गणपति बप्पा को मोदक का भोग लगाया जाएगा। कहते हैं कि बप्पा का सबसे पसंदीदा भोग मोदक है। यही वजह है कि लंबोदर को प्रसन्न करने के लिए भक्त उन्हें मोदक  का ही भोग लगाते हैं। गणेश जी को आखिर मोदक ही क्यों सबसे ज्यादा प्रिय है इसके पीछे पुराणों में काफी रोचक कहानियां बताई गई हैं।

कहा जाता है कि मोदक अमृत से बना है। जिसको बनाने के बाद देवताओं ने एक दिव्य मोदक माता पार्वती को दिया था। गणेश जी जब अमृत से बने दिव्य मोदक के बारे में पता चला तो उनके मन में इसे खाने की इच्छा हुई। उन्होंने माता पार्वती से मोदक प्राप्त कर उसे खाया और तभी से उन्हें मोदक प्रिय हो गया। मोदका अर्थ खुशी या हर्ष होता है। गणेश जी हमेशा खुश रहते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर उनके जीवन में भी खुशी लाते हैं। इसीलिए गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। भक्त भी भगवान गणेश को खुश करने के लिए मोदक, जिसका अर्थ खुशी होता है, का भोग लगाते हैं। मान्यता है कि गणेश जी को अगर 21 मोदक चढ़ाएं जाते हैं तो उनके साथ साथ बाकी के सभी देवी- देवताओं का पेट भी भर जाता है। इसी वजह से गणपति को भोग में मोदक अर्पित किया जाता है। ताकि उनके साथ ही अन्य सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त हो सके।


गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गणेश जी का जन्म हुआ था। इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है और कुछ लोग तो गणेश प्रतिमा को स्थापित करते हैं और 11 दिन बाद उनका विसर्जन कर देते हैं।

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध क्यों है?

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना अशुभ माना जाता है क्योंकि इसके पीछे एक पौराणिक कथा है।

एक बार गणेश जी को चंद्र लोक से निमंत्रण मिला और उनका प्रिय भोजन मोदक भी भोजन में थे। उन्होने जी भर कर मोदक खाए और कुछ मोदक अपने साथ भी ले गए। मोदक बहुत ज़्यादा थे, जो संभाले नहीं गए। इसको देख, चंद्र देव हँसने लगे। गणेश जी को यह देख गुस्सा आ गया और क्रोध में चंद्र देव को श्राप दे दिया कि जो भी उन्हें देखेगा, वह कलंकित होगा। चंद्र देव घबरा गए और गणेश जी से माफी याचना करने लगे। लेकिन श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था। उस दिन चतुर्थी थी, इसलिए गणेश जी ने उस श्राप को एक दिन तक ही सीमित रखा। चतुर्थी के चाँद को न देखने की वजह शायद यही पौराणिक कथा होगी।

भगवान गणेश का विसर्जन क्यों किया जाता है?

गणेश महोत्सव का आखिरी दिन गणेश विसर्जन की परंपरा है. 10 दिवसीय महोत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन के बाद होता है. परंपरा है कि विसर्जन के दिन गणपति की मूर्ति का नदी, समुद्र या जल में विसर्जित करते हैं. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. ऐसा माना जाता है कि श्री वेद व्यास जी ने गणपति जी को गणेश चतुर्थी के दिन से महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी, उस समय बप्पा उसे लिख रहे थे. कहानी सुनाने के दौरान व्यास जी आंख बंद करके गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणपति जी लिखते गए. कथा खत्म होने के 10 दिन बाद जब व्यास जी ने आंखे खोली तो देखा कि गणेश जी के शरीर का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया था. ऐसे में व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को ठंडा करने के लिए जल में डुबकी लगवाई. तभी से यह मान्‍यता है कि 10वें दिन गणेश जी को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन जल में किया जाता है।

गणेश चतुर्थी 2022

आज से करीब 100 से पहले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ही गणेशोत्सव की नींव रखी थी. इस त्योहार को मनाने के पीछे का उद्देशय अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करना था. आज जिस गणेशोत्सव को लोग इतनी धूम-धाम से मनाते हैं, उस पर्व को शुरू करने में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.

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1890 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक अक्सर चौपाटी पर समुद्र के किनारे बैठते थे और वे इसी सोच में डूबे रहते थे कि आखिर लोगों जोड़ा कैसे जाए. अंग्रेजों के खिलाफ एकजुटता बनाने के लिए उन्होंने धार्मिक मार्ग चुना. तिलक ने सोचा कि क्यों न गणेशोत्सव को घरों से निकालकर सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए, ताकि इसमें हर जाति के लोग शिरकत कर सकें.

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धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार श्री वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था. 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया है. तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया था. इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है.

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इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया. यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई. माटी झरने भी लगी. तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा. इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है.

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मान्‍यता है कि गणपति उत्‍सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्‍छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं. गणेश स्‍थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्‍छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्‍हें शीतल किया जाता है.

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गणपति बप्‍पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गण‍पति जी का मयूरेश्‍वर स्‍वरूप माना जाता है. गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्‍याचार से बचने के लिए देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया. सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को वाहन चुना और छह भुजाओं का अवतार धारण किया. इस अवतार की पूजा भक्‍त गणपति बप्‍पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।


गणपति पालकी पालडी एम






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