आदिवासियों का मसीहा महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव(maharaja pravir chandra bhanjdeo)

 महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव

 एक राजा जिसे आदिवासियों के जल जंगल जमीन के अधिकारों की रक्षा एंव उन्हें राजनीतिक तौर पर मजबूत करने से डर कर तत्कालीन सरकार द्वारा हज़ारों लोगों के साथ गोलियों से भून कर मार दिया गया! वो थे ‘बस्तर’ रियासत के महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव।

देश की आजादी के तुरंत बाद महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने संतुष्ट होकर अपनी रियासत का भारत गणराज्य में विलय करवा दिया था। उस दौरान हैदराबाद के निजाम ने बस्तर महाराजा को खूब प्रलोभन देकर भारत गणराज्य में ना मिलने की सलाह भी दी, पर महाराजा ने उसके प्रलोभनों को ठुकराते हुए भारत गणराज्य में ही मिलने का संकल्प लिया । 1 जनवरी 1948 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर बस्तर को भारतीय गणराज्य में शामिल कर दिया । 

जब भारत आजाद हो चुका था और झारखंड के आदिवासी नेता डॉ.जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के हक की बात कर रहे थे। डॉ. अांबेडकर संविधान के भाग पांच और छ: में आदिवासियों के हक में तमाम प्रावधानों को निर्मित कर चुके थे। तो एक तरह से संविधानगत रोडमैप तैयार हो चुका था, जरुरत थी बस संवैधानिक अधिकारों को अमल में लाने की। जयपाल सिंह मुंडा कहीं न कहीं तत्कालीन बड़ी राजनीति पार्टी की चाल को समझ नही पा रहे थे। यह बात प्रवीर चंद्र भंजदेव को पसंद नही आ रही थी। वे पहले बस्तर और बाद में गोंडवाना और उसके बाद पूरे देश के आदिवासियों को राजनीतिक रूप से जागरूक करने की कोशिश करने लगे। सन 1957 में वे जगदलपुर विधान सभा का चुनाव लड़े और भारी मतों से विजयी हुए। जीतने के बाद उन्होंने स्थानीय लोगों का काम ईमानदारी से करना शुरू किया।

चार साल में प्रवीर चंद्र भंजदेव अविभाजित मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता के रूप में उभर चुके थे। सत्ताधारी पार्टी राजा से नेता बने प्रवीर चंद भंजदेव को तमाम प्रलोभन के बाद भी आदिवासी दमनकारी वाले खेमे में नहीं कर पाई। तल्खियां बढ़ती जा रही थीं। हालांकि कांग्रेस का सदस्य रहते हुए ही 1957 में वे विधायक बने थे। लेकिन आदिवासियों के प्रति सरकार के रवैए से निराश होकर 1959 में विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मामला था मालिक-मकबूजा भ्रष्टाचार कांड का। बस्तर रियासत के दौरान ही कानून बना था कि आदिवासी की जमीन गैर आदिवासी नहीं ले सकता। लेकिन आजादी के बाद उसमें संशोधन कर उसमें कई छेद कर दिये गये। नतीजा यह हुआ कि एक बोतल शराब या कुछ पैसों में ही बाहरी लोग आदिवासियों के जंगल, जमीन हड़पने लगे। साल और सांगवान के जंगल खत्म होने लगे। इसे मालिक-मकबूजा भ्रष्टाचार कांड नाम दिया गया। राजा ने इस भ्रष्टाचार और संशोधन का व्यापक विरोध किया। आदिवासी विरोधी सरकारी नीतियों के खिलाफ जब पूर्व राजा की सक्रियता बढ़ गई तब फरवरी 1961 में उन्हें कुछ दिनों के लिए हिरासत में भी लिया गया। केंद्र सरकार ने कार्रवाई आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए राजा के रूप में मिली उनकी सुविधाएं भी समाप्त कर दीं।

                                       बस्तर के आदिवासी सरकार के इस कदम से हैरान थे। एक तरह बस्तर में विद्रोह की स्थिति खड़ी हो गई। राजा के समर्थन में व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया। आदिवासियों में राजा के प्रति लोकप्रियता से चिढ़कर प्रशासन ने आदिवासियों का दमन करने का निश्चय किया। मार्च 1961 में बीस हजार आदिवासियों पर निर्ममतापूर्वक गोलियों की बौछार की गई, जिसमें अनेक आदिवासी मारे गये। राजा को लग चुका था कि हमें अलग से राजनीतिक राह बनानी होगी। इसलिए सन 1962 तक आते-आते वे पूरे देश के आदिवासियों के लिए एक आदिवासी पार्टी की नींव रखने के विषय में विचार करने लगे। सारी व्यवस्था कर ली गयी थी। इसी साल होने वाले विधान सभा में इनके साथियों ने विधान सभा चुनाव का सामना किया और बस्तर_के_दस_विधानसभा_सीटों_में_से_9_सीट_पर_बड़ी_ऐतिहासिक_जीत_हासिल_कर_ली। उनके बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से देश की सबसे बड़ी सत्ता परेशान हो गई। राजा की यह जीत सरकार को आदिवासियों के जनसंहार का प्रत्युत्तर था।

                             इस बीच अनेक मुद्दों जबरन लेवी वसूली, आदिवासी महिलाओं से पुलिस का दुर्व्यवहार, भुखमरी, दण्डकारण्य प्रोजेक्ट इत्यादि पर भंजदेव का सरकार से सामना होता रहा। आदिवासी मुद्दों को लेकर वे अनेक अनशन और शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी किये। भंजदेव प्रशासन के लिए हमेशा चुनौती बने रहे, क्योंकि वे हमेशा जन मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे। आदिवासियों के बीच उनकी लोकप्रियता भी सरकार को अखर रही थी। भंजदेव के रहते बस्तर में जंगल काटने वाले या खनिज निकालने वाले उद्योगपतियों का घुसना मुश्किल हो गया था। वह इसलिए भी कि उद्योगपतियों के तरफ से तमाम अनियमितताएं की जा रही थी, जिसे सरकार में बैठे लोगों का स्पष्ट समर्थन मिल रहा था। सरकार किसी तरह से इन समस्याओं से निजात पाना चाहती थी।

                                       

इसी बीच 25 मार्च 1966 को एक घटना घट गई। पूरे बस्तर से बड़ी संख्या में आदिवासी लोग एक त्योहार मनाने को लेकर अपने अभिभावक भंजदेवजी के महल में इकट्ठा हुए थे।  उस दौरान पुलिस ने महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव व आदिवासियों को षड्यंत्र रचने के बहाने से आनन-फानन में पूरे राज महल को घेर लिया। सभी आदिवासी राजमहल के अंदर जा चुके थे। पुलिस ने सभी को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। भंजदेव ने पहले महिलाओं और बच्चों को आत्मसमर्पण करने के लिए भेजा। इस दौरान पुलिस ने निहत्थे औरतों और बच्चों फायरिंग शुरु कर दी, बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे मारे गये। पुलिस के इस हरकत से फिर किसी को आत्मसमर्पण करने की हिम्मत नहीं हुई। इसके बाद और अधिक पुलिस बल मंगा लिये गये। राजमहल में घुसकर पुलिस ने हजारों आदिवासियों समेत राजा को गोलियों से भून दिया। दोपहर तक राजमहल में सन्नाटा पसर चुका था। पुलिस ने अत्याचार की पराकाष्ठा का प्रदर्शन किया था । उस समय के युवा जो येनकेन प्रकारेण वहां से जिंदा बच गये थे वे बताते है कि उस दौरान इतने लोग मारे गये थे कि बस्तर के आसपास जंगलों में लाशे ही लाशे थी । और इस सच को छिपाने के लिए क्रुर सरकार ने करीब तीन साल तक महल को अपने कब्जे में रखकर महल की सफाई और अपनी क्रुरता के सबुत मिटाये थे । 

एक ऐसा राजा जिसने कभी राज नहीं किया, लेकिन हमेशा अपने लोगों के जेहन में राजा के रुप में राज किया।

#एक_ऐसा_राजा_जो_एक_ही_बार_में_नौ_आदिवासियों_को_विधानसभा_भेज_चुका_था। 

प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों में आदिवासियों का हक चाहता था। बस्तर की आदिवासी आबादी उम्मीदों से जगमगा रही थी। वह राजा जो आदिवासियों के लिए शिक्षा और रोजगार चाहता था, वह 25 मार्च 1966 को अपने ही महल की सीढ़ियों पर सीने में 25 गोलियां लिए पड़ा था। यह उस समय की बात है जब लाल गलियारा नहीं बना था। भारत में नक्सलवाद नहीं था। राजा लाल गलियारा और नक्सलवाद दोनों से आदिवासियों को बचाना चाह रहा था।

राजा की मौत से सरकार के प्रति आदिवासियों के मन में अविश्वास का जो भाव पैदा हुआ, वह आज तक झलकता है।

तब से लेकर आज तक बस्तर जल रहा है। हर दिन आदिवासी हलाक हो रहे हैं। आदिवासियों का बड़ा जत्था पत्थलगड़ी के माध्यम से अपनी पहचान और हक के लिए लड़ने पर मजबूर है। एक सवाल जिसे भंजदेव हल करना चाहते थे, वह आज भी मुंह बाए खड़ा है और वहां की समस्याएं निरंतर बड़ी होती जा रही हैं।

ऐसे जननायक व अमर शहीद के बलिदान दिवस पर सादर नमन ।

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